213
अच्छा, कोई बात नहीं है
जाना चाहो, जा सकती हो,
लेकिन दर यह खुला रहेगा
जब चाहो तुम आ सकती हो ।
214
दुनिया में सबकी होती है
कुछ ना कुछ अपनी मजबूरी ,
रूठ गई क्यों चली गई तुम
बिना सुने ही बातें पूरी
।
219
माना मेरी ही ग़लती थी
अब तो बताओ क्या है करना,
उलझे रहना उन बातों में
या कि उससे कभी उबरना ?
216
बात चली तो कई कहाँ तक
रातों-रात कहाँ तक फैली,
तिल का ताड़ बना देते है
दुनियावालों की है शैली ।
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