अनुभूतियाँ 046 ओके
181
सुनी सुनाई बात नहीं है
जो देखा सो मैने बोला
वक़्त गवाही देगा मेरी
ज़हर हवा में किसने घोला।
182
एक ज़माना वो भी था जब
सीने से लिपटी रहती थी ,
बिजली के गर्जन से डर कर
बाँहों में सिमटी रहती थी ।
183
वक़्त सिखा देता है सबको
और भले कोई न सिखाए
अपने अन्दर झाँकोगी जब
जीवन क्या है? समझ में आए
184
वक़्त बड़ा जालिम होता है
राजा तक को रंक बना दे,
दुर्ग महल चौबारे सारे ,
ख़ाक में जाने कब ये मिला दे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें