रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ 116/03

 

क़िस्त 116/क़िस्त 3

461

झगड़ा करना रूठ भी जाना

और मुझी पर दोष लगाना

कितना सब आसान तुम्हे है

बेमतलब का रार बढ़ाना

 

462

छोड़ गया जब कोई अचानक

दिल में सूनापन रहता है

एक ख़लिश सी रहती दिल में

दिल चुप हो कर सब सहता है


463

तू तू मैं मैं  से क्या होना

जो होना था हो ही गया अब

उन बातों का क्या करना है

ख़्वाब जगा था ,सो भी गया अब

 

464

हम दोनों के दर्द एक से

लेकिन दबा रहें हम दोनों

कहने को तो बात बहुत है

लेकिन छुपा रहे हम दोनों

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