269
मौसम आते मौसम जाते
और हवाओं की सरगोशी,
कह देती है सारी बातें
एक तेरी लम्बी ख़ामोशी।
270
जो
कहना है कह दो खुल कर
मन
के अन्दर क्यों रखती हो?
जान
रहा हूँ दर्द तुम्हारा
दर्द
छुपा कर क्यों रखती हो ?
271
दुनिया क्या है आडम्बर है
और जाल में
फँस जाना है,
छोड़ यहीं तू चल
जायेगा
जिस दिन डोरी कस जाना है ।
272
धोने को तो रोज़ हैं धोते
मन का मैल नहीं धुल पाता,
मन्दिर मस्जिद ही जाने से
मन का द्वार नहीं खुल जाता ।
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