रविवार, 8 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 68

 

 

269

मौसम आते मौसम जाते

और हवाओं की सरगोशी,

कह देती है सारी बातें

एक तेरी लम्बी ख़ामोशी।

 

270

जो कहना है कह दो खुल कर

मन के अन्दर क्यों रखती हो?

जान रहा हूँ दर्द तुम्हारा

दर्द छुपा कर क्यों रखती हो ?

 

271

दुनिया क्या है आडम्बर है

और जाल में फँस जाना है,

 छोड़ यहीं तू चल जायेगा

जिस दिन डोरी कस जाना है ।

 

272

धोने को तो रोज़ हैं धोते

मन का मैल नहीं धुल पाता,

मन्दिर मस्जिद ही जाने से

मन का द्वार नहीं खुल जाता ।

 

 

 

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