शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 044

 अनुभूतियाँ 044 ओके

173

तोड़ दिया जब तुमने बन्धन

क्या कहता है कोई, छोड़ो,

छोड़ो भूली बिसरी बातें-

नया किसी से नाता जोड़ो ।

 

174

पढ़ लो मेरी आँखों में तुम

वही पुरानी एक शिकायत

बस मुझ पर ही सितमगरी है

ग़ैरों पर तो खूब इनायत।

 

175

यह भी कोई बात हुई क्या

मैं कुछ पूछूँ तुम ना बोलो

पहलू में   तो आक बैठॊ

हृदय पटल भी ना तुम खोलो

 

176

पेड़ हरा था, सूख गया अब

पात पात झड़ गए डाल के,

तुमने सोचा, अच्छा सोचा

क्या करना मुझको सँभाल के ।


 

कोई टिप्पणी नहीं: