सोमवार, 9 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 73

 

289

पर्वत पर्वत सहरा सहरा

नदिया अविरल बहती जाती,

दुनिया की परवाह न करती

अपनी धुन में हँसती गाती ।

 

 

290

बीती बातॊं में क्या रख्खा

जिनको तुम दुहराती अकसर,

भूतकाल में क्यों जीती हो ?

आगे की सुधि लेना बेहतर

 

291

दुनिया की अपनी गाथा है

और तुम्हारी अलग कहानी,

कौन सदा सुख में रहता है

जान रही हो, फिर अनजानी ।

 

292

औरों को उपदेश सुनाना

उस पर चलना खुद ना भाए,

प्रवचन करना अलग बात है

मगर निभाना किसको आए ?


 

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