289
पर्वत पर्वत सहरा सहरा
नदिया अविरल बहती जाती,
दुनिया की परवाह न करती
अपनी धुन में हँसती गाती ।
290
बीती बातॊं में क्या रख्खा
जिनको तुम दुहराती अकसर,
भूतकाल में क्यों जीती हो ?
आगे की सुधि लेना बेहतर
291
दुनिया की अपनी गाथा है
और तुम्हारी अलग कहानी,
कौन सदा सुख में रहता है
जान रही हो, फिर अनजानी ।
292
औरों को उपदेश सुनाना
उस पर चलना खुद ना भाए,
प्रवचन करना अलग बात है
मगर निभाना किसको आए ?
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