रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियां 122/09

 

क़िस्त 122/क़िस्त 9

 

485

जनता को क्या अनपढ़ समझा

लम्बी लम्बी फेंक रहे हो

जलता है घर और किसी का

अपनी रोटी सेंक रहे हो

 

486

सुख दुख जीवन के दो पहलू

बारी बारी आना जाना

आजीवन कब दोनों रहते

क्या हँसना क्या नीर बहाना

 

487

सबके अपने अपने मसले

सब की अपनी है मजबूरी

साथ निभानेवाला कोई-

हमराही है एक ज़रूरी

 

488

मीठी मीठी चिकनी चुपड़ी

समझ रहा हूँ बातें सारी

देख रहा हूँ पट के पीछे

शहद घुली है घात कटारी


 

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