शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 103

 

409

सुबह शाम तुम पूछा करती
" कैसे हो,जी! कैसे हो, जी ! "
और न फिर कुछ बातें करना
हर दिन तुमको क्या यह सूझी ?

 

410

’तालिबानी’-सोच भरा है

कुछ लोगों के मन के अन्दर,

नाम भले हों ऊँचे-ऊँचे

काम से लेकिन हैं बौने भर ।

 

411

नावाक़िफ़ हो, कैसे कह दूँ ,

इतनी तो नादान नहीं तुम,

प्यार मुहब्ब्त की बातों से

इतनी भी अनजान नहीं तुम ।

 

412

कलियाँ झूम रही गुलशन में

बागबान की बुरी नज़र है,

इक दिन चुन कर ले जायेगा

कलियों को कब कहाँ ख़बर है?


 

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