409
सुबह शाम तुम पूछा करती
" कैसे हो,जी!
कैसे हो, जी ! "
और न फिर कुछ बातें करना
हर दिन तुमको क्या यह सूझी ?
410
’तालिबानी’-सोच भरा है
कुछ लोगों के मन के अन्दर,
नाम भले हों ऊँचे-ऊँचे
काम से लेकिन हैं बौने भर ।
411
नावाक़िफ़ हो, कैसे कह दूँ ,
इतनी तो नादान नहीं तुम,
प्यार मुहब्ब्त की बातों से
इतनी भी अनजान नहीं तुम ।
412
कलियाँ झूम रही गुलशन में
बागबान की बुरी नज़र है,
इक दिन चुन कर ले जायेगा
कलियों को कब कहाँ ख़बर है?
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