शनिवार, 7 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त52

 

205

मैने कब तुमसे ये कहा था

गंगाजल से धुला हुआ हूँ ,

जब चाहो तुम तब पढ़ लेना

पन्ना पन्ना खुला हुआ हूँ ।

 

206

दुनिया को मालूम नहीं है

क्या क्या बात हुई थी तुम से,

कोशिश उनकी लाख रही पर

जान सके वह कब कुछ हम से ।

 

207

कितनी बार सफ़ाई दूँ मैं

कितनी बार वही दुहराऊँ,

जब तुमको स्वीकार नहीं तो

सच मैं कितनी बार बताऊँ ?

 

208

जबतक धूप इधर को आती

पहले ही आ गए अँधेरे

अपनों की यह साजिश थी या

अपनी होनी के थे फेरे ?

 

 

 

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