205
मैने कब तुमसे ये कहा था
गंगाजल से धुला हुआ हूँ ,
जब चाहो तुम तब पढ़ लेना
पन्ना पन्ना खुला हुआ हूँ ।
206
दुनिया को मालूम नहीं है
क्या क्या बात हुई थी तुम से,
कोशिश उनकी लाख रही पर
जान सके वह कब कुछ हम से ।
207
कितनी बार सफ़ाई दूँ मैं
कितनी बार वही दुहराऊँ,
जब तुमको स्वीकार नहीं तो
सच मैं कितनी बार बताऊँ ?
208
जबतक
धूप इधर को आती
पहले
ही आ गए अँधेरे
अपनों
की यह साजिश थी या
अपनी
होनी के थे फेरे ?
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