शनिवार, 7 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ: क़िस्त57

 

225

एक हाथ से ताली कैसे

बजती होगी ज़रा बता दो,

बिना आग के धुआँ उठाना

कैसे उठता यह समझा दो ।

 

226

ढूँढ ढूँढ कर लाती हो तुम

वो बातें जो नहीं गवारा,

घुमा-फिरा कर आ जाती हो

उसी बिन्दु पर, वहीं दुबारा ।

 

227

क्यों न गया मैं द्वार तुम्हारे

भटक रहा था क्यों जीवन भर ?

और अन्त में होना ही था

अपनी करनी अपने सर पर ।

 

 

228

इस बादल में शेष नहीं जल

शायद तुम ने सोचा होगा ।

जितना था सब बरस चुका है

छूछा बादल, ओछा  होगा ।


 

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