225
एक हाथ से ताली कैसे
बजती होगी ज़रा बता दो,
बिना आग के धुआँ उठाना
कैसे उठता यह समझा दो ।
226
ढूँढ ढूँढ कर लाती हो तुम
वो बातें जो नहीं गवारा,
घुमा-फिरा कर आ जाती हो
उसी बिन्दु पर, वहीं दुबारा ।
227
क्यों न गया मैं द्वार तुम्हारे
भटक रहा था क्यों जीवन भर ?
और अन्त में होना ही था
अपनी करनी अपने सर पर ।
228
इस बादल में शेष नहीं जल
शायद तुम ने सोचा होगा ।
जितना था सब बरस चुका है
छूछा बादल, ओछा
होगा ।
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