ग़ज़ल 288 [53E]
2122---2122---2122--212
रात आए ख्वाब में वो, दिन सुहाना हो गया
ज़िंदगी को फिर से जीने का बहाना हो गया
लौट आओ छोड़ दो जिद, मै ग़लत तुम ही सही
अब तुम्हे रूठे हुए भी इक ज़माना हो गया
व्यर्थ की बातों को तुम दिल पर ही ले लेती हो क्यों
काम लोगों का यहाँ उँगली उठाना हो गया
तुम से क्या नज़रें मिलीं और कुछ इशारे क्या हुए
फिर हवा में तैरने को इक फ़साना हो गया
हुस्न की ताक़त कहूँ या दिल ही मेरा नातवाँ
इक झलक देखा नहीं ,दिल आशिकाना हो गया
इस मकां से क्या गए तुम, एक तनहाई बची
बाद उसके दिल मेरा ग़म का ठिकाना हो गया
ज़िंदगी भर साथ देना, इश्क़ में होना फना
सच कहूँ "आनन" कि ये जुमला पुराना हो गया
-आनन्द.पाठक-
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