शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ: क़िस्त 102

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 102 ओके

405

हो जाएँगी ख़ुशियाँ बोझिल

अगर न तुम इनको बाँटोगी

स्वर्ण महल में कब तक आख़िर

तनहा तनहा दिन काटोगी ?

 

406

वादे करना, क़समें खाना

उसकी आदत में शामिल है,

और न कोई एक निभाना

क्यों न कहूँ मैं, वह बातिल है।

 

407

मन भारी था, दर्द कमर में

रोज़ रोज़ के नए बहाने,

इश्क़ इबादत, प्रेम समर्पण

क्या होता है, वह क्या जाने।

 

408

कब तक भोली बनी रहोगी

कब तक ये बचकानी बातें,

कब तक मैं समझाऊँ तुमको

कुछ तो करो सयानी बातें ।


 

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