405
हो जाएँगी ख़ुशियाँ बोझिल
अगर न तुम इनको बाँटोगी
स्वर्ण महल में कब तक आख़िर
तनहा तनहा दिन काटोगी ?
406
वादे करना, क़समें खाना
उसकी आदत में शामिल है,
और न कोई एक निभाना
क्यों न कहूँ मैं, वह बातिल है।
407
मन भारी था, दर्द कमर में
रोज़ रोज़ के नए बहाने,
इश्क़ इबादत, प्रेम समर्पण
क्या होता है, वह क्या जाने।
408
कब तक भोली बनी रहोगी
कब तक ये बचकानी बातें,
कब तक मैं समझाऊँ तुमको
कुछ तो करो सयानी बातें ।
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