रविवार, 8 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ क़िस्त 70

 

 

277

बात यहाँ की हो कि वहाँ की

हर चर्चा में शामिल होगा,

साँस बाँध कर दौड़ रहा तू

सोच ज़रा क्या हासिल होगा ?

 

278

नदिया अविरल बहती रहती

नहीं देखती पीछे मुड़ कर,

विलय कल्पना में जीती है,

मिट जाना सागर से जुड़ कर।

 

279

वैसे तो कुछ बात नहीं है

पीड़ा है जानी पहचानी,

पास जो बैठो, कह लें, सुन लें

अपनी अपनी राम कहानी ।

 

280

हाथ मिलाना, मिल कर रहना

कोई मुश्किल काम नहीं है,

लेकिन अहं गुरुर आप का

खड़ी करे दीवार वहीं है ।


 

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