277
बात यहाँ की हो कि वहाँ की
हर चर्चा में शामिल होगा,
साँस बाँध कर दौड़ रहा तू
सोच ज़रा क्या हासिल होगा ?
278
नदिया अविरल बहती रहती
नहीं देखती पीछे मुड़ कर,
विलय कल्पना में जीती है,
मिट जाना सागर से जुड़ कर।
279
वैसे तो कुछ बात नहीं है
पीड़ा है जानी पहचानी,
पास जो बैठो, कह लें, सुन लें
अपनी अपनी राम कहानी ।
280
हाथ मिलाना, मिल कर रहना
कोई मुश्किल काम नहीं है,
लेकिन अहं गुरुर आप का
खड़ी करे दीवार वहीं है ।
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