337
हँस कर जीना एक कला है
रो-रो कर यह जीना क्यों है,
छोटी छोटी बातों पर यूँ
घूँट खून का पीना क्यों है ।
338
बन्द खिड़कियाँ खोलो मन की
आने दो कुछ नई हवाएँ,
बन्द अँधेरे कमरों में हम
आशाओं के दीप जलाएँ ।
339
मन के अन्दर प्रेम का अमृत
मन के अन्दर विष नफ़रत का
निर्णय तुमको लेना होगा
ग़लत सही अपनी चाहत का ।
340
कुछ
तो कमियाँ सब के अन्दर
क्या
सबको सब कुछ हासिल है?
कब होता इन्सान फ़रिश्ता
हस्ती किसकी कब कामिल है ?
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