361
चाक गिरेबां कुर्ता मेरा
और तेरी रेशम की साड़ी ,
दिवा-स्वप्न में मिलन देखना
कितनी मेरी सोच अनाड़ी ।
362
राह
न रोकूँ ,हट जाऊँ मैं
अगर
यही है चाह तुम्हारी,
और
दुआ मैं क्या कर सकता
निष्कंटक
हो राह तुम्हारी ।
363
एक परीक्षा. अभी और है
गली तुम्हारी, मुझे गुज़रना,
पार हुए तो फिर जीना है
वरना मरने से क्या डरना ।
364
आ न
सकूँगा द्वार तुम्हारे
ये
न समझना प्यार नहीं है,
तन
मेरा हो भले कहीं भी
मन अटका
हर बार वहीं है ।
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