गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त91

 

361

चाक गिरेबां कुर्ता मेरा

और तेरी रेशम की साड़ी ,

दिवा-स्वप्न में मिलन देखना

 कितनी मेरी सोच अनाड़ी ।

 

362

राह न रोकूँ ,हट जाऊँ मैं

अगर यही है चाह तुम्हारी,

और दुआ मैं क्या कर सकता

निष्कंटक हो राह तुम्हारी ।

 

363

एक परीक्षा. अभी और है

गली तुम्हारी, मुझे गुज़रना,

पार हुए तो फिर जीना है

वरना मरने से क्या डरना ।

 

364

आ न सकूँगा द्वार तुम्हारे

ये न समझना प्यार नहीं है,

तन मेरा हो भले कहीं भी

मन अटका हर बार वहीं है ।


 

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