शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 105

 

 417

इधर उधर की बातें क्यों तुम

करती रहती घुमा फिरा कर,

क्यों मुझको भरमाती रहती

झूठी मूठी बात बना कर ।

 

418

नज़र झुका कर फिर न उठाना

मुझको काफी एक इशारा ,

दिल की बात अगर मैं  कह दूँ

तुम को शायद हो न गवारा ।

 

419

छू कर आतीं मृदुल हवाएँ

जब जब तेरा कोरा आँचल,

रोम-रोम तब खिल उठता है

मन मेरा हो जाता  पागल ।

 

420

सच है कि वो नज़र न आता

होने का एहसास है लेकिन ,

शीतल मन्द सुगन्ध हवा-सी

रहता सदा पास है लेकिन ।

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