बुधवार, 11 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 083

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 083 ओके

329

भौगोलिक सीमाओं में कब

बँध पाया है प्यार किसी का,

जिस ने तुमको हमको बाँधा

यह भी है उपकार उसी का।

 

330

एक तुम्हारा ही चेहरा है

राह दिखाता रहता अकसर,

चाहे जितनी पथरीली हो

राहें जितनी भी हो दुष्कर।

 

331

जो कहना है सीधे कह दो

इधर उधर की बातें क्या फिर,

दिल जब पत्थर हो ही गया है

सुख-दुख की सौगातें क्या फिर।

 

332

डाल डाल पर उड़ उड़ बैठूँ

ऐसा नहीं परिंदा हूँ मैं

छोड़ गई हो जिस डाली को

उसी डाल पर ज़िंदा हूँ मैं ।


 

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