329
भौगोलिक सीमाओं में कब
बँध पाया है प्यार किसी का,
जिस ने तुमको हमको बाँधा
यह भी है उपकार उसी का।
330
एक तुम्हारा ही चेहरा है
राह दिखाता रहता अकसर,
चाहे जितनी पथरीली हो
राहें जितनी भी हो दुष्कर।
331
जो कहना है सीधे कह दो
इधर उधर की बातें क्या फिर,
दिल जब पत्थर हो ही गया है
सुख-दुख की सौगातें क्या फिर।
332
डाल डाल पर उड़ उड़ बैठूँ
ऐसा नहीं परिंदा हूँ मैं
छोड़ गई हो जिस डाली को
उसी डाल पर ज़िंदा हूँ मैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें