349
सच की करें हिमायत खुल कर
कहाँ गए वो करने वाले,
अब वो कहीं नहीं दिखते हैं
प्यार में थे जो मरने वाले ।
350
धीरे धीरे छोड़ गए सब
एक तुम्हारी आस बची है,
तुम भी अब जाने को कहती
एक आख़िरी साँस बची है ।
351
जाते जाते ख़त ले जाना
लिखा कभी था भेज न पाया,
सोचा था कुछ और लिखूँगा
लेकिन दर्द सहेज न पाया ।
352
औरों के सितम पर क्या कहते
अपनों ने सितम जब ढाया है,
अच्छा ही हुआ सब देख लिया
है अपना कौन, पराया
है ।
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