बुधवार, 11 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त88

 

349

सच की करें हिमायत खुल कर

कहाँ गए वो करने वाले,

अब वो कहीं नहीं दिखते हैं

प्यार में थे जो मरने वाले ।

 

350

धीरे धीरे छोड़ गए सब

एक तुम्हारी आस बची है,

तुम भी अब जाने को कहती

एक आख़िरी साँस बची है ।

 

351

जाते जाते ख़त ले जाना

लिखा कभी था भेज न पाया,

सोचा था कुछ और लिखूँगा

लेकिन दर्द सहेज न पाया ।

 

352

औरों के सितम पर क्या कहते

अपनों ने सितम जब ढाया है,

अच्छा ही हुआ सब देख लिया

 है अपना कौन, पराया है ।

 

 

 

 

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