शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 110

 

437

प्रेम अगन ही एक अगन है

अपने आप दहक जाती है,

जितना इसे बुझाना चाहो

उतनी  और भड़क जाती है ।

 

438

बिन्दु-वृत्त का जो है रिश्ता

उस त्रिज्या से सधे हुए हैं

एक परस्पर आकर्षण से,

हम तुम दोनों बँधे हुए हैं ।

 

439

अंधकार हो अगर हॄदय में,

आशा की भी किरन वहीं है

हार मान कर बैठे रहना

यह कोई संघर्ष नहीं  है ।

 

440

अगर चला जाता है कोई ,

दुनिया भला कहाँ रुक जाती

चार दिनों के बाद वही फिर

लौट के पटरी पर है आती ।


 

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