437
प्रेम अगन ही एक अगन है
अपने आप दहक जाती है,
जितना इसे बुझाना चाहो
उतनी और भड़क जाती है ।
438
बिन्दु-वृत्त का जो है रिश्ता
उस त्रिज्या से सधे हुए हैं
एक परस्पर आकर्षण से,
हम तुम दोनों बँधे हुए हैं ।
439
अंधकार हो अगर हॄदय में,
आशा की भी किरन वहीं है
हार मान कर बैठे रहना
यह कोई संघर्ष नहीं है ।
440
अगर चला जाता है कोई ,
दुनिया भला कहाँ रुक जाती
चार दिनों के बाद वही फिर
लौट के पटरी पर है आती ।
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