सोमवार, 9 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 78

 

309

निर्मल हो तुम, माना मैने

लेकिन कुछ है दुनियादारी,

एक ज़रूरत बन जाती है

कुछ बातों की पर्दादारी ।

 

310

नादाँ है, दीवाना है वह

दुनिया कहती उसको पागल,

प्यास बुझाता है धरती की

ख़ुद प्यासा रह जाता बादल ।

 

311

ना मैं राजा, ना तुम रानी

पर दोनो की एक कहानी,

आँख तुम्हारी नम रहती है
आँख मेरी भी नम रह जानी ।

 

312

बात यक़ीनन कुछ तो होगी

जो तुम मुझ से छुपा रही हो,

दर्द कहाँ दबता है ऐसे-

जो बेबस तुम दबा रही हो ।

 


 

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