रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ 120/07

 
क़िस्त 120/क़िस्त 7
 
477
जिन बातों से चोट लगी हो
मन में उनको, फिर लाना क्यों
जख्म अगर थक कर सोए हो
फिर उनको व्यर्थ जगाना क्यों
478
बीत गए वो दिन खुशियों के
शेष रह गई याद पुरानी
जीवन के पन्नों पर बिखरी
एक अधूरी लिखी कहानी
 
479
पर्दे के पीछे से छुप कर
कौन नचाता है हम सबको
कौन है वो जो खुशियाँ देता
कौन है जो देता ग़म सबको
 
480
सब दरवाजे बंद हो गए
होता नही कभी जीवन में
एक रोशनी अंधियारों में
सदा छुपी रहती है मन में

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