क़िस्त 120/क़िस्त 7
477
लौट चले अब ऎ मेरे दिल !
यादों की अपनी बस्ती में
जहाँ उसे छेड़ा करते थे
शाम-सुबह अपनी मस्ती में
478
बीत गए वो दिन खुशियों के
शेष रह गई याद पुरानी
जीवन के पन्नों पर बिखरी
एक अधूरी लिखी कहानी
479
पर्दे के पीछे से छुप कर
कौन नचाता है हम सबको
कौन है वो जो खुशियाँ देता
कौन है जो देता ग़म सबको
480
सब दरवाजे बंद हो गए
होता नही कभी जीवन में
एक रोशनी अंधियारों में
सदा छुपी रहती है मन में
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