381
अन्तर्मन से अन्तर्मन का
जब अटूट हो जाता बंधन,
गौण सभी तब हो जाते है
रूप-राशि तन का आकर्षन ।
382
कल
न रहूँगा साथ तुम्हारे
रुकना
नहीं सफ़र में अपने,
धीरज
रख कर पूरा करना
हम
दोनों के जो थे सपने ।
383
जीवन क्या? संघर्ष कथा है
दीप-शिखा की तूफ़ानों से,
दुनिया तुम को पहचानेगी
ज्योति-पुंज के अभियानों से ।
384
धीरे-धीरे
आखिर हम-तुम
इतनी
दूर चले ही आए ,
कहती
हो तुम वापस जाऊँ
तुम
को कौन भला समझाए ।
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