गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त96

 

381

अन्तर्मन से अन्तर्मन का

जब अटूट हो जाता बंधन,

गौण सभी तब हो जाते है

रूप-राशि तन का आकर्षन ।

 

382

कल न रहूँगा साथ तुम्हारे

रुकना नहीं सफ़र में अपने,

धीरज रख कर पूरा करना

हम दोनों के जो थे सपने ।

 

383

जीवन क्या? संघर्ष कथा है

दीप-शिखा की तूफ़ानों से,

दुनिया तुम को पहचानेगी

ज्योति-पुंज के अभियानों से ।

 

384

धीरे-धीरे आखिर हम-तुम

इतनी दूर चले ही आए ,

कहती हो तुम वापस जाऊँ

तुम को कौन भला समझाए ।


 

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