रविवार, 29 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ 125/12

 अनुभूतियाँ 125/क़िस्त 12


497

जीवन है सौग़ात किसी की

जब तक जीना, हँस कर जीना

बात बात पर रोना क्या है

हर पल आँसू क्यों है पीना


498

देख सुबह की नव किरणों को

आशाएँ लेकर आती हैं

शीतल मन्द सुगन्ध हवाएँ

नई चेतना भर जाती हैं


499

कण कण में है झलक उसी की

अगर देखना चाहो जो तुम

वरना सब बेकार की बातें

नहीं समझना चाहो जो तुम


500

रोज़ शाम ढलते ही छत पर

एक दिया रख आ जाती हूं~

लौटोगे तुम इसी राह से

सोच सोच कर हुलसाती हूं~


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