गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 100

 

397

जिस दिन ज्वार उठेगा मन में

साहिल तक लहरें आएँगी,

चुपके चुपके दिल की बातें

साहिल से कह कर जाएँगी ।

 

398

जो बीता, सो बीत गया अब

ग़लत-सही की बातें छोड़ो.

दिख जायेगी कुछ तो ख़ूबी

अगर न मुँह तुम मुझसे मोड़ो

399

अपनी मरजी के मालिक तुम

क्या मैं इस पर कह सकता हूँ,

अगर लिखी होगी तनहाई

तो तनहा भी रह सकता हूँ ।

 

400

’अनुभूति’ यह नई नहीं  है

हर मन की यह एक व्यथा है,

सूरज उगने से ढलने तक

सुख-दु:ख की बस एक कथा है ।

कोई टिप्पणी नहीं: