गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 97

 

385

धुआँ भर गया है कमरे में

खोलो खिड़की दरवाजे सब,

वरना घुट कर मर जाओगी

नई हवाएँ आने दो अब ।

 

386

याद नहीं कुछ रहता अब तो

सुबह हुई या शाम हुई है

कौन गया कब, कौन आया है

हस्ती किसके नाम हुई है ।

 

387

कौन छुपा है दिल के अन्दर

नयन तुम्हारे बोला करते

दर्द तुम्हारा तुम से पहले

आँसू बन कर डोला करते ।

 

388

इश्क़ हक़ीक़ी, इश्क़ मजाज़ी

एक इश्क है, पहलू दो हैं

फ़र्क़ नहीं फिर रह जाता है

एक जगह जब मिलते वो हैं ।

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