385
धुआँ भर गया है कमरे में
खोलो खिड़की दरवाजे सब,
वरना घुट कर मर जाओगी
नई हवाएँ आने दो अब ।
386
याद
नहीं कुछ रहता अब तो
सुबह
हुई या शाम हुई है
कौन
गया कब, कौन आया है
हस्ती
किसके नाम हुई है ।
387
कौन छुपा है दिल के अन्दर
नयन तुम्हारे बोला करते
दर्द तुम्हारा तुम से पहले
आँसू बन कर डोला करते ।
388
इश्क़
हक़ीक़ी, इश्क़ मजाज़ी
एक
इश्क है, पहलू दो हैं
फ़र्क़
नहीं फिर रह जाता है
एक
जगह जब मिलते वो हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें