365
तर्क तुम्हारा अपना होगा
मिरी सफ़ाई कम तो नहीं थी ,
बात नहीं कुछ सुननी मेरी
वरना दुहाई कम तो नहीं थी ।
366
एक
कल्पना थी कि हक़ीक़त
सच
क्या था मालूम नहीं है,
इतना
पता मुझे है लेकिन
वह
इतनी मासूम नहीं है ।
367
एक झलक ही देखा था बस
देखा नहीं नज़र भर उसको
कौन थी वह जो दीवाना सा
ढूँढ रहा जीवन भर उसको।
368
एक
याचना रही तुम्हारी
मैं
ही था कुछ दे न सका था,
शुष्क
रेत की एक नदी थी
नाव
मैं अपनी खे न सका था ।
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