गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त92

 

365

तर्क तुम्हारा अपना होगा

मिरी सफ़ाई कम तो नहीं थी ,

बात नहीं कुछ सुननी मेरी

वरना दुहाई कम तो नहीं थी  

 

366

एक कल्पना थी कि हक़ीक़त

सच क्या था मालूम नहीं है,

इतना पता मुझे है लेकिन

वह इतनी मासूम नहीं है ।

 

367

एक झलक ही देखा था बस

देखा नहीं नज़र भर उसको

कौन थी वह जो दीवाना सा

ढूँढ रहा जीवन भर उसको।

 

368

एक याचना रही तुम्हारी

मैं ही था कुछ दे न सका था,

शुष्क रेत की एक नदी थी

नाव मैं अपनी खे न सका था ।

 

 


 

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