सोमवार, 9 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 77

 

305

चाँद कहीं हो, कहीं चाँदनी
ऐसा भी क्या होना मुमकिन
?
दोनॊ के संबंध अमर हैं
फ़ूल कहाँ होते ख़ुशबू बिन
?

 

306

जीवन है तो आएँगे ही

आँधी तूफ़ाँ झंझावातें,
कभी अँधेरा भी उतरेगा
कभी चाँदनीवाली रातें ।

 

307

एक बार जो तुम आ जाओ
ग़म के  अँधियारे मिट जाएँ,

गीत प्रेम की नई सुबह में

हम तुम दोनॊं मिल कर गाएँ ।

 

308

कब तक बीती बातॊं को तुम

बोझ लिए दिल पर ढोऒगी ?
वक़्त अभी है पास तुम्हारे
आगे की तुम कब सोचोगी
?


 

कोई टिप्पणी नहीं: