शुक्रवार, 13 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ :क़िस्त 104

 

413

इतना मुझको डरा न पगली !

जान निकल जाएगी मेरी,

कर्मों का फल सबको मिलता

बात नई क्या इसमे तेरी ?

 

414

कौन इधर से गुज़रा है जो

महक रहा है सारा गुलशन

बेमौसम आ गईं बहारें

कलियाँ कलियाँ करती नर्तन ।

 

415

रूप-राशि से अपनी, सुमुखी !

मत बाँधों इस भोले मन को

तोड़ न पाऊँगा जीवन भर

भुजपाशों के इस बंधन को ।

 

416

क्या क्या गुजरी दिल पर मेरे

क्या क्या तुमको बतलाऊँ मैं

आँसू मेरे, अपने ग़म से

दिल को अपने बहलाऊँ मैं


 

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