सोमवार, 9 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त79

 313

कलियाँ हँसती चमन महकता

फ़स्ल-ए-गुल का आना-जाना,

जाने कब तक होगा उसका

भूले से गुलशन में आना

 

314

साहिल पर बैठे बैठे क्या

सोच रही हो तनहाई में,
मोती लेकर आता वो ही

उतरा है जो गहराई में ।

 

315

ये तेरी ख़ामोशी क्या है

कुछ तो बोल बता कर जाती,

ख़बर नहीं अब मिलती कोई
साँस अटकती जाती- आती
?

 

316

तुम ने जो थी कही कहानी

’सच ही होगा’-मान लिया था,

जान रहा था, झूठ तुम्हारा

सच का तुमने नाम दिया था ।


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