गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 94

 

373

जब तक है चेतना तुम्हारी

तब तक इसको थाती समझो,

जबतक साँस तभी तक तुम हो
वरना तन फिर माटी समझो

 

374

सूरज जबतक चमक रहा है

जो करना है कर जाना  है,

शाम ढलेगी तो फिर सबको

अपने अपने घर जाना है ।

 

375

सबकी यूँ पहचान अलग है

लेकिन भीतर सत्व एक है,

रंग-रूप हो अलग अलग पर

सब के अन्दर ’तत्व ’ एक है

 

 

376

रात गई सो बात गई अब

उन बातों को दुहराना क्यों

नई सुबह की नई किरन में

फिर से सबको बतलाना क्यों ।


 

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