369
प्यास अधूरी रह जाती है
दुनिया भर के बंधन-साँकल ,
कभी इधर है धरती प्यासी
कभी उधर है प्यासा बादल ।
370
बैठे ठाले लिख देते हो
मेरे सर इलजाम लगा कर ,
रत्ती भर था दोष न मेरा
किसे कहूँ मै रो कर-गा कर ।
371
जीवन की आपा-धापी में
इतना वक़्त नहीं मिल पाया,
ख़ुद से भी खुद मिल न सका मैं
हासिल भी लाहासिल पाया ।
372
केन्द्र-वृत्त
का जो रिश्ता है
ठीक
वही रिश्ता गोरी से,
दूर
दिखे पर दूर नहीं वह
बँधे
हुए हैं इक डोरी से ।
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