गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त93

 

369

प्यास अधूरी रह जाती है

दुनिया भर के बंधन-साँकल ,

कभी इधर है धरती प्यासी
कभी उधर है प्यासा बादल ।

 

370

बैठे ठाले लिख देते हो

मेरे सर इलजाम लगा कर ,

रत्ती भर था दोष न मेरा

किसे कहूँ मै रो कर-गा कर

 

371

जीवन की आपा-धापी में

इतना वक़्त नहीं मिल पाया,

ख़ुद से भी खुद मिल न सका मैं

हासिल भी लाहासिल पाया ।

 

372

केन्द्र-वृत्त का जो रिश्ता है

ठीक वही रिश्ता गोरी से,

दूर दिखे पर दूर नहीं वह

बँधे हुए हैं इक डोरी से ।


 

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