क़िस्त 118/क़िस्त 5
469
आ अब लौट चले मेरे दिल !
यादों की भूली बस्ती में
जहाँ उन्हे छेड़ा करते थे
अपनी धुन में , मस्ती मे
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निश-दिन याद करूँगा तुम को
हक़ है मेरा उन यादों पर
जाने अनजाने जो किया था
मुझे भरोसा उन वादों पर
471
पहले वाली बात कहाँ अब
मौसम बदला तुम भी बदली
वो भी दिन क्या दिन थे अपने
मैं ’पगला’ तुम थी ’पगली’
472
शाम ढलेगी , गोधूली में
सब चरवाहें घर जाएंगे
हमको भी तो जाना होगा
कितने दिन तक रह पाएँगे
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