शनिवार, 14 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 111

 अनुभूतियाँ : क़िस्त 110 ओके

441

गिरना-पड़ना, उठना-चलना

पाना-खोना, हँसना-रोना ,

प्यार-मुहब्बत, मिलन जुदाई

जब तक साँस तभी तक होना ।

 

442

पीड़ा की अपनी पीड़ा है

दुनिया कहाँ सुना करती है ?

अपनी ही बस गाती रहती

अपनी राह चला करती है ।

 

443

आँख भिगोने वाली बातें

 क्यों करती रहती तुम अकसर

द्वार हृदय का खुला हुआ है

 जब दिल चाहे  आना दिलबर।

 

444

पाप-पुण्य का बोझ उठाए

घूम रही हो तुम दुनियाभर

सत्य विवेचन कर देगा मन

झाँकोगी जब मन के अन्दर

 

 

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