449
भली रही या बुरी रही थी ,
एक लगन की एक अगन थी,
तेरे घर की राहें दुष्कर,
लेकिन चाहत आजीवन थी ।
450
दुनिया
चाहे जो भी समझे,
’अनुभूति’
के रंग हमारे,
वक़्त
कसौटी पर जाँचेगा,
रंग निखर
आएँगे सारे ।
451
जब हमने ख़ुद राह चुनी है,
राह-ए-मुहब्बत, राह फ़ना की
दोष किसी को फिर देना क्या
किसने छोड़ी राह वफ़ा की ।
452
सच का
साथ न छोड़ा मैने,
द्वन्द रहा आजीवन मन में.
साँस साँस बन हर पल उतरी,
’अनुभूति’ मेरे जीवन में ।
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आखिरी बंद
भावनाएँ कभी बन गईं तितलियाँ
वेदनाएँ तड़प कर बनी बिजलियाँ
जब न पीड़ा मेरी ढल सकी शब्द में
बन के आँसू ढली मेरी अनुभूतियाँ
वेदनाएँ तड़प कर बनी बिजलियाँ
जब न पीड़ा मेरी ढल सकी शब्द में
बन के आँसू ढली मेरी अनुभूतियाँ
-- समाप्त-
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