गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 98

 

389

जीवन भर चलता रहता है

एक तमाशा मेरे आगे ,

आ जाती है नींद किसी को

कोई सुबह सुबह ही जागे ।

 

390

क़तरे में है बसा समन्दर

या कि समन्दर में क़तरा है,

जब आपस में मिल जाना है

क्यों रहता तन पर पहरा है ?

 

391

सुख-दु:ख की है आँख मिचौली

हार-जीत का यह खेला है ,

जीवन क्या है? आना-जाना

चार दिनों का बस मेला है ।

 

392

ग़म के साथ पला करते हैं

आने वाले कल के सपने,

और पता यह भी चल जाता

कौन पराया ,कौन हैं अपने ।


 

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