389
जीवन भर चलता रहता है
एक तमाशा मेरे आगे ,
आ जाती है नींद किसी को
कोई सुबह सुबह ही जागे ।
390
क़तरे
में है बसा समन्दर
या
कि समन्दर में क़तरा है,
जब
आपस में मिल जाना है
क्यों
रहता तन पर पहरा है ?
391
सुख-दु:ख की है आँख मिचौली
हार-जीत का यह खेला है ,
जीवन क्या है? आना-जाना
चार दिनों का बस मेला है ।
392
ग़म
के साथ पला करते हैं
आने
वाले कल के सपने,
और
पता यह भी चल जाता
कौन
पराया ,कौन हैं अपने ।
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