क़िस्त 95/05 [माही उस पार]
1
सपनों के शीश महल
टूट ही जाना है
सच, आज नहीं तो कल
2
चलने की तैय्यारी
आ मेरी माहिया
कुछ और निभा यारी
3
मेरी भी गली में आ
ओ मेरी माहिया !
बस एक झलक दिखला
4
कांटों से भरी राहें
तेरे दर की हों
फिर भी तुमको चाहें
5
आसान नहीं होतीं
प्रेम नगर वाली
गलियाँ सँकरी होतीं
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