बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

ग़ज़ल 299 [64इ] : ये अपना दिल है दिवाना (होली)

 ग़ज़ल 299 [64इ]


1222--1222--1222--1222

एक ग़ज़ल : होली पर

ये दिल अपना है दीवाना, हुआ दिलदार होली मे

चढ़ी है भाँग की मस्ती, लुटाए प्यार होली में


अभी तक आप से होती रही हैं 'फोन' पर बातें

यही चाहत हमारी है कि हो दीदार होली में


तुम्हे भी तो पता होगा, जवाँ दिल की है हसरत क्या.

खुला रखना सनम इस बार घर का द्वार होली में ।


उधर हैं राधिका रूठी, न खेलेंगी वो कान्हा से

इधर कान्हा मनाते हैं,  करें मनुहार होली में


जब आता मौसिम-ए-गुल तो कली लेती है अँगड़ाई.

बिना छेड़े ही बज उठते हॄदय के तार होली में ।


न रंगों का कोई मजहब, तो रंगों पर सियासत क्यों ,

सदा रंग-ए-मुहब्बत ही लगाना यार होली में।


न रखने हाथ देती हो झटक देती हो क्यो हँसकर ,

जवानों से जवाँ लगते हैं बूढ़े यार होली में ।


 नहीं छोटा-बड़ा कोई हुआ करता कभी ’आनन’

यही पैगाम देना है समन्दर पार,  होली में ।


-आनन्द पाठक-

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