ग़ज़ल 308
2122---2122---2122
इश्क़ क्या है? दो दिलों की बस्तगी है
एक ने’मत है , खुदा की बंदगी है
राह-ए-उलफ़त का सफ़र क्या तय करेगा
सोच में ही जब तेरी आलूदगी है
इश्क़ कब अंजाम तक पहुँचा हमारा
इक अधूरी सी कहानी ज़िंदगी है
लोग हैं खुशबख़्त जिनको प्यार हासिल
चन्द लोगों के लिए यह दिल्लगी है
आप का मैं मुन्तज़िर जब से हुआ हूँ
एक मैं हूँ इक मेरी शाइस्तगी है
दूसरा चेहरा नज़र आता नहीं अब
जब से मेरे दिल से उनकॊ लौ लगी है
आप आनन को भले समझे न समझें
दिल में मेरे आज भी पाकीजगी है ।
-आनन्द.पाठक-
शब्दार्थ
बस्तगी = लगाव खिंचाव
ने’मत = ईश्वरी कूपा
आलूदगी = खोट, मिलावट,अपवित्रता
मुन्तज़िर = प्रतीक्षक इन्तज़ार करने वाला
शाइस्तगी = शिष्टता शराफ़त
पाकीजगी =पवित्रता
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