शनिवार, 11 फ़रवरी 2023

ग़ज़ल 305[70इ] : निज़ाम आया नया है

 ग़ज़ल 305 [ 70इ]


1222---122


निज़ाम आया नया है

बयाँ सच का मना है


उधर आँसू गिरे हैं

इधर पत्थर गला है


अगर तुम चुप रहोगे

तो फिर मालिक ख़ुदा है


अमीर-ए-कारवाँ बन

हमे फिर छल रहा है


मेरी ख़ामोशियों का

किसी को क्या पता है


दिया नन्हा सही, पर

अँधेरों से लड़ा  है


सवालों के मुक़ाबिल

इधर ’आनन’ खड़ा है 


-आनन्द.पाठक-


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