ग़ज़ल 301[66इ]
1222---1222---1222---1222
तुम्हारे हुस्न का जल्वा किसी को जब दिखा होगा
ख़ुमारी आजतक होगी नहीं उतरा नशा होगा
ख़यालों में किसी के तुम कभी जो आ गए होगे
भला वह शख़्स अपने आप में फिर कब रहा होगा
तुम्हे हूँ चाहता दिल से. फ़ना होने की हद तक मैं
न दुनिया को ख़बर होगी, तुम्हे भी क्या पता होगा
यकीं करना तुम्हारा राज़ मेरे साथ जाएगा
जमाने से दबा है यह जमाने तक दबा होगा
कभी तुम लौट कर आना समझ लेना करिश्मा क्या
तुम्हारा नाम रट रट कर , कोई ज़िंदा रहा होगा
अगर ढूढोंगे शिद्दत से तो मिल ही जाएगा वो भी
तो मकसद ज़िंदगी का और अपना ख़ुशनुमा होगा
निगाह-ए-शौक़ से ढूँढा इसी उम्मीद से ’आनन’
कभी दैर-ओ-हरम में एक दिन तो सामना होगा
-आनन्द.पाठक--
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