ग़ज़ल 306 [71 इ]
221---2121--1221---212
मंज़िल पे है नज़र, मुझे काँटों का डर नहीं
छाले पड़े हैं पाँव में कहता मगर नही
पत्थर के देवता से ही अब कुछ उमीद है
गो, आँसुओं का उस पे भी होता असर नहीं
यह तो मकान और किसी का मकीन तू
दो दिन का है क़याम यहाँ, तेरा घर नहीं
ठोकर लगा के आप ने दिल तोड़ क्यों दिया
क्या दिल गरीब का अभी है मोतबर नहीं ?
गो, हादिसे तमाम तेरे सामने हुए
उस पर दलील यह कि तुझे कुछ ख़बर नहीं
दो-चार लाइनों में सुनाऊँ तो किस तरह
ये दास्तान ज़िंदगी की मुख़्तसर नहीं
जब इन्तखाब तुमको निगाहों ने कर लिया”
आनन’ को दूसरा कोई आता नज़र नहीं
-आनन्द.पाठक-
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