क़िस्त 96/06 [माही उस पार]
1
तुम पास जो आओ तो
प्यास मेरी देखो
खुल कर जो पिलाओ तो
2
कब प्यास बुझी सब की
नदियाँ प्यासी हैं
प्यासा है समन्दर भी
3-
इक बार ही नाम लिया
नाम तेरा लेकर
जग ने बदनाम किया
4
मैं कैसे कह पाता
छू देती गर तुम
तन और महक जाता
5
मौसम महका महका
रंग लगा देना
मन है बहका बहका
-आनन्द.पाठक-
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