ग़ज़ल 300 [65इ]
2122--2122--2122
आँधियों से तुम अगर यूँ ही डरोगे
किस तरह लेकर दिया आगे बढ़ोगे
मंज़िले तो ख़ुद नहीं आतीं है चल कर
नीद से तुम कब उठोगे कब चलोगे ?
वक़्त का होता अलग ही फ़ैसला है
कर्म जैसा तुम करोगे, तुम भरोगे
कब तलक उड़ते रहोगे आसमाँ में
तुम ज़मीं की बात आकर कब करोगे?
झूठ ही जब बोलना दिन रात तुमको
सच की बातें सुन के भी तुम क्या करोगे
कब तलक पानी पे खींचोगे लकीरे
और खुद विरदावली गाते रहोगे
हक़ बयानी पर यहाँ पहरे लगे हैं
अब नहीं ’आनन’ तो फिर तुम कब उठोगे ?
-आनन्द.पाठक-
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