"वैलेन्टाइन डे पर-[2023]
हास्य ग़ज़ल 302 [ 67इ]
1222---1222---1222---1222
इधर दिखती नहीं अब तुम, किधर रहती हो तुम जानम !
चलो मिल कर मनाते हैं ’ वेलनटाइन’ दिवस हमदम !
दिया जो हार पिछली बार पीतल का बना निकला
दिला दो हार हीरे का नहीं दस लाख से हो कम
खड़े हैं प्यार के दुश्मन लगा लेना ज़रा ’हेलमेट’
मरम्मत कर न दें सर का "पुलिसवाले" मेरे रुस्तम !
ज़माने का नहीं है डर करेगा क्या पुलिसवाला
अगर तुम पास मेरे हो नहीं दुनिया का है फिर ग़म
बता देती हूँ मैं पहले , नहीं जाना तुम्हारे संग
कि बस ’फ़ुचका’ खिला कर तुम मना लेते हो ये मौसम
इधर क्या सोच कर आया कि है यह खेल बच्चों का !
अरे ! चल हट निकल टकले, नहीं ’पाकिट’ में तेरे दम
घुमाऊँगा , खिलाऊँगा, सलीमा भी दिखाऊँगा,
अब ’आनन’ का ये वादा है, चली आ ,ओ मेरी हमदम !
-आनन्द.पाठक-
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