401
सोने के मृग कब होते हैं
जान रही है दुनिया सारी
लिखा हुआ है वो होना है
भाग्य-लेख कब जाए टारी
402
दुखती रग पर उँगली रख दी
तुमने जाने या अनजाने
ज़ख़्म हमारे हरे हो गए
दर्द लगे हैं फिर से गाने ।
403
कब काटी है बात तुम्हारी
तुमने कहा सुना है मैने
तुनक-मिजाज़ी से वाकिफ़ था
फिर भी तुमको चुना है मैने॥
404
मन मुझसे कहता रहता है
प्रेम विधा है, एक समर्पन
सभी समाहित होते इसमे
श्रद्धा भक्ति पूजन-अर्चन ।
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