शनिवार, 7 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त58

 

229

ऊँगली कहाँ उठाएँ किस पर

लोग सियासत में काले हैं,

शहद भरे रहते हैं मुँह में

घड़ियाली आँसूवाले हैं ।

 

230

ऎसी कोई बात नहीं थी

जिस पर तुमने रोष जताया,

हरा-भरा था ’लान’ हमारा

नागफ़नी फिर क्यों उग आया ।

 

231

तनहा तनहा चल न सकोगी

साथ साथ चलना ही बेहतर,

मोड़ मोड़ पर रहजन होंगे

कहीं न तुम रह जाओ लुट कर ।

 

232

ऊँगली सभी उठाते मुझ पर

नहीं किसी ने खुद में झाँका,

सबने अपनी ही नज़रों से

जैसा देखा, मुझको आँका ।


 

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