क़िस्त 93/ 03 [माही उस पार]
1
दुनिया की छोड़ो तुम
क्या करना इसका
दिल से दिल जोड़ो तुम
2
ख़्वाबों में मिला करना
लौट के आऊँगा
इक दीप जला रखना
3
अब क्या मजबूरी है
और सुना माहिया
तेरी बात अधूरी है
4
जानी पहचानी सी
लगती है तेरी
कुछ मेरी कहानी सी
5
बाग़ों के बहारों का
रंग चढ़ा मुझ पर
कलियों के नज़ारों का
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