241
झूठे वादे थे सब उसके
निश-दिन उसकी राह निहारे,
कब आना था उसको लेकिन
यादें आईं साँझ-सकारे
242
मजबूरी क्या क्या न हमारी
जान रहे थे तुम भी प्रियतम !
क़दम हमारे बँधे हुए थे .
आती भी तो कैसे, हमदम !
243
आज अचानक याद तुम्हारी
मलय गन्ध से भीगी आई ,
सोए सपने जाग उठे सब
सपनों नें ली फिर अँगड़ाई ।
244
शाम इधर होने को आई
तुम अपना सामान उठा लो,
अनजाने कुछ ग़लत हुआ हो
नादानी थी, समझ भुला दो ।
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