गुरुवार, 12 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ : क़िस्त 95

 

377

खुशबू भला कहँ बँध पाती
कलियों, फूलों के बंधन में,
पंख हवाओं के लगते ही
छा जाती गुलशन गुलशन में ।
 

378

चाहत नहीं मरा करती है

एक तेरे ठुकराने भर से ,

साँस साँस में घुली हुई है

देख सको गर खुली नज़र से ।

 

379

एक प्रश्न पूछा था तुमने

दे न सका था उस दिन उत्तर,

कितना ढूँढा पोथी-पतरा

उत्तर था बस " ढाई-आखर’।

 

380

सार यही जीवन का समझो

निश्छल पावन प्रेम समर्पन,

पोथी-पतरा मैं क्या जानूँ

जानूँ एक यही बस ’दर्शन’।


 

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