377
खुशबू भला कहँ बँध पाती
कलियों, फूलों के बंधन में,
पंख हवाओं के लगते ही
छा जाती गुलशन गुलशन में ।
378
चाहत
नहीं मरा करती है
एक
तेरे ठुकराने भर से ,
साँस
साँस में घुली हुई है
देख
सको गर खुली नज़र से ।
379
एक प्रश्न पूछा था तुमने
दे न सका था उस दिन उत्तर,
कितना ढूँढा पोथी-पतरा
उत्तर था बस " ढाई-आखर’।
380
सार
यही जीवन का समझो
निश्छल
पावन प्रेम समर्पन,
पोथी-पतरा
मैं क्या जानूँ
जानूँ
एक यही बस ’दर्शन’।
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