शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

अनुभूतियाँ क़िस्त 48

 

189

जन्म यही तो नहीं आख़िरी

बाद मिलेंगे और जनम भी

सात जनम तक साथ रहेगा

अमर प्रेम का यही नियम भी ।

 

190

अवचेतन मन में संचित है

भूली बिसरी याद पुरानी,

तनहाई में मुझे सुनाती

बची हुई अनकही-कहानी ।

 

191

हानि-लाभ कुछ सोच समझ कर

 ही तुम ने मुँह मोड़ लिया है ,

और कहूँ क्या इस से ज़्यादा

भला किया दिल तोड़ दिया है।

 

192

आशाओं की किरणें डूबी

और अँधेरा छाने वाला ,

छोड़ गया जो घर को अपने

लौट भला कब आने वाला ।  


 

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